सोमवार, 9 जुलाई 2012

टीस की ताल

दर्द रात्रि सा
गहन हुआ
कसक मीलों अंधियारी
तारे कसमसाते नींदों में
रतजगे ने की
सपनों से यारी ए
दिन चढ़ता रात की पिनक
बलाईंया धूप की
लेती परछाई
पनाह लेती षाम दुबकती
लगती भोर
सूरज की धमकाई ए

धूल सी उड़ जाती बातें
लपलपाती जीभ
दुनिया सारी
जिसके मुंह चढ़ती रसती
हुई जैसे
द्रौपदी की सारीए
कह सुन के र्दद
पसर गया
टीस की ताल गई सम पर
गीत रचा कुछ
जाना सा
गाया था जिसे उम्र भर
.किरण राजपुरोहित नितिला


बुधवार, 9 मई 2012

http://youtu.be/5xjo2wzASkU 


save our nationl bird Peacock_ a  mission  a man_ Baba gaon  (Pali , Raj)

मंगलवार, 17 अप्रैल 2012

शब्द_

शब्द
अपने अर्थों  के
आयाम समेटते
संकीर्ण होते
समकालिक सिद्ध होने की लालसा में
-शब्द
क्यूं बिसारने लगे अपने अर्थ
उतरे बिखरे
विद्रोही वे अर्थ
हो न हो अब
टूट पेडेंगे सभ्यता पर !
.....................किरण राजपुरोहित नितिला

गुरुवार, 16 फ़रवरी 2012

कितनी कितनी बाते है जो
होठों से टकराती नहीं
चिंहुक चिंहुक कर सो जाती
स्वरों  संग लयकाती   नहीं  
मखमली खुद के होने का
एहसास हरदम कराती रही
हर धड़क के साथ उसकी 
गुनगुन  आती जाती रही
मानू उसको सच कितना पर
जग कहे कुछ और सही
छू छू कर लौट जाती खुसबू
 हुई रंगीन कच्ची उम्र की  बही

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

लड्डू पूरी चटनी अचार
खाने की हिदायत बार बार
लोटने पर पूछेगी कई बार
एक टिफिन ,सागर सा माँ का प्यार

बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

वो पुलकित धड़कन

वो पुलकित धड़कन
बीती खामोशियां
अब भी कसमसाती है
कूहूकना   चाहती है
शालीनता से
जो कभी बस
इक पल चहक कर
रह गई थी
संस्कारों के पैरों तले
वो नन्ही सी
कचनार  जैसी
 पुलकित धड़कन
 अब भी उनींदी है
डायरी के किसी पन्ने तले
और रह रह कर
झांक जाती है
मन के किसी
मोड़ पर
और मैं
 नजरअंदाज नहीं कर पाती !
.....किरण राजपुरोहित नितिला

सोमवार, 10 जनवरी 2011

मैं और तुम

मैं और तुम
गुनगुनाता
खतम होता हुआ
गीत तुम्हें याद कर
फिर से
मन में बजने लगता
तुम्हारी छवि संग
रागें नृत्य करती
रचती स्वर लहरियां,
व्यग्रता की ताल
बहा ले जाती मधुर यादों  में
जहां मुस्कुरा रहे होते
मैं और तुम !
बनकर
हम!
किरण राजपुरोहित नितिला